संक्षिप्त संपादकीय व्याख्या-अक्सर लोग अपने कार्य करने में यह कहकर लापरवाह दिखने का प्रयास करते हैं कि जो भी करेगा ‘वह भगवान और देवता करेगा।’ कुछ लोग दिखावे के लिये भक्ति कर बस यही समझते हैं कि बस उनका काम हो गया। अनेक कथित साधु संत भी यही कहते हैं कि भगवान और देवता की दया से सारे काम होते हैं। इस मत का समर्थन नहीं किया जा सकता।
दैहिक रूप से मनुष्य ही अपने कर्म का कर्ता है पर उसकी बुद्धि भगवान और देवताओं की आराधना से निर्मित होती है। जो मनुष्य निष्काम भाव से भगवान और देवताओं की आराधना करता है तो उसकी बुद्धि भी वैसे ही निष्पाप हो जाती है और स्वतः उसके हाथों से पवित्र काम संपन्न होते हैं। इसलिये ऐसे ही भगवान या देवताओं के स्वरूप की आराधना करना चाहिये जिससे अपने हृदय में जीवंतता की अनुभूति होती हो। जैसा देवता का स्वरूप होता है वैसी ही उसकी बुद्धि निर्मित होती है और वैसे ही उसका कर्म होता है और फिर तो उसका वैसा ही परिणाम निश्चित होता है।
भगवान और देवताओं की आराधना कर यह नहीं समझना चाहिये कि वह कोई डंडा लेकर आदमी के कल्याण और रक्षा के लिये पहरा देते हैं। उनकी आराधना कर हम कोई उनको अपनी सेवा में नियुक्ति नहीं देते। हम जिस तरह उनकी भक्ति करते हैं उसके अनुसार ही हमारी बुद्धि,कर्म और फल का निर्माण होता है। हृदय में उनके स्वरूप कार धारण करना भी आवश्यक है। दिखावे की आराधना या भक्ति करने से कोई लाभ नहीं होता।
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